26 April 2018

पत्रकार स्वयं की लड़ाई लड लेंगे, तो सब पवित्तर कर देंगे...

हमारे देश में चिकित्सकों को भगवान माना जाता है, और आम तौर पर उन्हे श्रद्धा की नजर से ही देखा जाता है, दुश्मन की नज़र से नही. सारे देश में अपने सुविधाजनक एसी चेम्बर में बैठ कर परामर्श दे रहे चिकित्सकों की सुरक्षा हेतु चिकित्सक सुरक्षा विधेयक लागु किया गया है. मगर दुर्गम परिस्थितियों में, खतरनाक ऑपरेशनस के दौरान व आपराधिक सफेद-पोश माफीयाओं के खिलाफ दर दर भटक कर रिपोर्टींग करने वाले पत्रकारों के लिये अधिकांश प्रदेशों में पत्रकार सुरक्षा कानून अब तक लागू नही किया गया.
देश भर में चिकित्सक एक ही संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन से सम्बद्ध हैं और इसी मातृ- संस्था के बैनर तले एक हैं. देश में वकीलों कि स्थिती भी मजबूत है क्योंकी वे भी बार काउंसिल ऑफ इण्डिया के बैनर पर स्टेट बार काउंसिल ऑफ इंडिया से बंधे हैं. "श्रमजीवी चिकित्सक संघ" या "आंचलिक वकील संघ" नामों वाले संगठन देश भर में कंही भी अस्तित्व में नही है. किंतु पत्रकारों के दर्जनों संगठन प्रत्येक राज्य में संचालित किये जा रहे हैं. कहने को "बार काउंसिल ऑफ इडिया" व "मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया" की तर्ज पर "प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया" का भी गठन किया गया है. मगर जो मजबूत संरचना निचले स्तर तक बार व मेडीकल काउंसिल की है, वह प्रेस काउंसिल की नही है. युं तो सुप्रिम कोर्ट का रिटायर्ड जज प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का प्रमुख होता है मगर बार काउंसिल के प्रमुख की तरह देश भर के पत्रकारों द्वारा नही चुना जाता. वह मनोनित किया जाता है. 
आज तक देश में जिस प्रमुखता से चिकित्सकों व वकीलों ने अपनी आवाज समय-समय पर प्रभावी तौर से बुलंद की है वेसा पत्रकार अपनी मांगों को लेकर नही कर पाये. देश में प्रेस की स्वतंत्रता पर आघात के नाम पर पत्रकारों को किसी बंधन में नही बांधा जाना आज पत्रकारों की दुर्दशा का प्रमुख कारण है. पत्रकार स्वतंत्रता के नाम पर पिछडे रह गये और कई भागों में बंट गये. आखिर क्यों प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया वकीलों व चिकित्सकों की तर्ज पर देश में पत्रकारों का पंजियन नही करती ? आज भी पत्रकारों को स्वयं को पत्रकार परिभाषित करने के लिये राज्य सरकारों के समक्ष याचना करना पडती हैं. तब जबकी प्रेस की स्वतंत्रता का ढिंढोरा पीटा जाता है मगर पत्रकार होने, ना होने का निर्णय राज्य सरकारें करती हैं. किसी भी कॉलेज से एमबीबीएस अथवा लॉ की डिग्री ले कर कोई भी व्यक्ति स्वतंत्र चिकित्सक अथवा वकील के तौर पर कार्य कर सकता हैं और उसके बाद उनके हितों की रक्षा बार अथवा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन करती हैं. चुंकी पत्रकारों के पास प्रेस काउंसिल से अधिमान्य होने की सरल व्यवस्था नही है इसीलिये देश में वास्तविक तौर पर कार्य करने वाले पत्रकारों में से मात्र 10 प्रतिशत पत्रकार भी सरकारों द्वारा अधिमान्य नही हैं और संकट व आवश्यकता के समय उन्हे स्वयं को पत्रकार साबित करना ही मुश्किल हो जाता है.
बार काउंसिल की तर्ज पर पत्रकारों के लिये भी वर्ष में दो बार परीक्षाएं आयोजित की जानी चाहीये. वकील बनने के लीये लॉ की डिग्री अनिवार्य है और उसके बाद भी प्रेक्टीस शुरु करने के लिये वकीलों को बार काउंसिल द्वारा आयोजित परीक्षा पास करनी होती है. इसके लिये कई अवसर होते हैं और यह एक सरल परीक्षा होती है. पत्रकारों के लिये डीग्री आवश्यक नही है क्योंकी पत्रकारीता सिलेबस आधारीत कम और दृश्टीकोण आधारीत ज़्यादा होती है और इसी वजह से डीग्री आवश्यक नही है. मगर प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया द्वारा कम से कम पत्रकारों का सामान्य द्रष्टिकोण तो आंका जा सकता है और इसके लिये वर्ष में दो बार कई अवसर दिये जा सकते हैं. सफल परिक्षार्थी को पत्रकार घोषित किया जाना चाहीये और फिर वह देश भर में पत्रकार के तौर पर जाना जाये. साथ ही वह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का सदस्य भी बन जाये. 
लाखों करोडों रुपये सरकार से संसाधनों के नाम पर लेने व खर्च करने के बावजुद प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने अपने गठन के बाद आज तक पत्रकार हितों के लिये सुधारात्मक कदम नही उठाये हैं. ना ही पत्रकारों को पहचान दिलाई है. पत्रकार आज भी अपनी पहचान के लिये या तो सरकार या फिर अपने मीडीया हॉउसेस के मालीकों पर निर्भर हैं. ओर यही कारण है की पत्रकार हितों व पत्रकार कल्याण के नाम पर राज्यों में कुकुरमुत्तों की तरह विभिन्न पत्रकार संगठन उग आये हैं और इन संगठनो ने पत्रकारों को एक करने के नाम पर और विभक्त कर दिया है. दशकों से पत्रकार हितों को ले कर देश में कोई बडा आंदोलन हुआ हो या चिकित्सकों व वकीलों की तरह देश भर के पत्रकार अपनी मांगों को लेकर एक साथ सडकों पर आये हो या अपने कार्य से विरत रहे हों या अपने हितों के लिये सरकारों पर दबाव बनाने में सफल हुए हों यह स्मृति में नही है. 
प्रदेश के किसी भी पत्रकार संगठन को गौर से देख लिजिये. क्या पत्रकारों को ये कोई भी बडा लाभ या उपलब्धि दे पाये हैं !! इन संगठनो द्वारा जारी पहचान-पत्र, सरकार की किसी योजना का लाभ दिलाने तो दूर, पत्रकार को पहचान दिलाने के लिये भी काफी नही. इन संगठनो के शिर्ष पदों पर लगातार वर्षों से काबीज पदाधिकारी, राजधानियों में अपना उल्लु साध लेते हैं और पत्रकार हितों को नजरअंदाज कर देते हैं. इन संगठनों के निर्वाचन भी होते हैं मगर किसी कॉर्पोरेट हाउस की तर्ज पर चलने वाले इन पत्रकार संगठनों के मालीक यानी पदाधिकारी कभी नही बदलते. लगभग हर जिले से इन्हे सौ-पचास पत्रकार मिल जाते हैं और राजधानी में आयोजित अधिवेशनों में दो ढाई हजार की संख्या दिखा कर इन संगठनों के पदाधिकारी अपने निजी हितों के लिये मौल भाव तक कर लेते हैं. प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को चाहिये की पत्रकारों को पंजिकृत व पहचान दिलाने का कार्य अपने हाथ में ले और इन्हे एक साथ एक ही संगठन के सदस्य बनाये. इन्ही सदस्यों के माध्यम से प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पदाधिकारी निर्वाचित किये जाये. ताकी पत्रकारों की आवाज देश में बुलंद हो सके और देश के पत्रकार एक हो सकें.   

‍‍~ कपिल सिंह चौहान
+919407117155

6 comments:

पंकज मलिक said...

बेहतरीन कपिल भाई

Kapil singh Chauhan said...

शुक्रिया पंकज जी

वरुण खंडेलवाल said...

पत्रकारिता और पत्रकारों के मर्म को समझाती हई बहुत ही सटीक बात लिख दी आपने। धन्यवाद आपको कपिल भाई

Rajesh laxkar said...

मेरे दिल की बात आपने अपने शब्दों में बयां कर दी।

Kapil singh Chauhan said...

शुक्रिया

Kapil singh Chauhan said...

धन्यवाद