सिर्फ लडकी
नही है, वह दोस्त है तुम्हारी. अजनबी भी हो सकती है, सहयात्री भी हो सकती है किसी बस में, ऑटो में, सहकर्मी भी हो सकती
है ऑफीस में, राहगीर भी हो सकती है. उसी रास्ते जिस रास्ते तुम चल रहे हो
वह भी किसी काम से या युं ही टहलने
या किसी मूड में या तफरी करने या
आवारगी में ही घुमने निकली हो. प्लीज़ अकेली छोड दो उसे, वह तुम
से कुछ नही चाहती. रहने दो उसे मस्ती में. जब तक वह खुद तुम से कुछ मांगे ना... वह
तो तुम से मदद भी नही मांगेगी... पता है क्यों
!! क्योंकी तुम आदमी हो... क्योंकी वह जानती है
की दुनिया में ज़्यादातर आदमी ही हैं, मर्द तो बहुत कम हैं... वह डरती है तुम से क्योंकी तुम सिर्फ आदमी हो...
तुम भी तो अपने कम्फर्ट के लिये शॉर्ट पहन कर निकले थे ना घर
से... तो उसे भी कम्फर्ट में रहने दो ना. जैसे वो चाहे... सिर्फ तुम्हारी ही वजह से क्योंकी तुम आदमी हो और वह
जानती है की तुम उसे रास्ते में मिलोगे इसलिये वह घर से निकलने पर अनकॉम्फर्ट ही
रहती है... कॉम्फर्टेबल तो सिर्फ घर में ही रह पाती है... वजह तुम हो... और तुमने
समझ लिया की उसे तो हक ही नही वेसा रहने का इसलिये वह ऐसा रहती है...
वह तुम्हे ड्रिंक करते दिखी तो तुमने समझ लिया की वह मूड में
है!!! उसे थोडी चड गयी तो तुम समझे इसे
कुछ चाहीये... अरे भाई !! हाँ वह मूड में है... मगर सिर्फ ड्रिंक करने के मूड में
है...
तुम्हे उसके वेस्टर्न पहनने से दिक्कत है... उसने तो अब तक
सलवार कुर्ता भी पहना... तब भी तुमने उसे बख्शा नही... तुम ट्रेन में हो या बस में, तुम ऑफीस में हो या घर पर, हर जगह. जैसे, तुम ड्रायविंग सीट पर बैठे हो या पिछे वाली सीट पर सफर कर रहे हो...जब वह
तुम्हारे रिक्शा में पैर रख कर बैठने की कोशीश करती है, उसी
वक्त तुम उसे बता देते हो की तुम आदमी हो. उसके रिक्शा में घुसने के लिये झूकते
वक्त जब तुम अपनी सीट पर थोडा उठ कर पता कर रहे थे ना की वह,
कुर्ती के अंदर से कैसी है तभी वह जान गयी थी की तुम मर्द नही हो... तुम सिर्फ
आदमी हो... उसने तुम से कुछ कहा नही, किसी से भी नही कहा, बस वह जान गयी... किससे कहती... किसको सुनाती... सुनने वाले भी तो
ज़्यादातर आदमी ही हैं...
तुम्हारी मां, बहिन
या पत्नी ने भी तो कभी सलवार-कुर्ता पहना होगा... वो भी तो स्कूल या ऑफिस जाती
होंगी, वो भी तो ट्रेन में सफर करती हैं ... बस-रिक्शा में
चढती हैं. हम सबकी मां-बहने, पत्नी वही करती हैं, वही सहती हैं जो 'वो' सहती
है... और इन सभी को सार्वजनिक जीवन में 'आदमी' मिलते हैं...
~ कपिल सिंह चौहान
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