14 November 2017

न्याय रहित निर्णय करना राजपुतों की परंपरा नही...



आज से पहले किसी ने जानने की कोशीश की कि ये 'पद्मावती' पात्र काल्पनिक है, या वास्तविक ? या ये जानने की कोशीश की "कि ये पात्र कितना काल्पनिक है और कितना वास्तविक ? कुछ ने की... मगर यह पात्र हिंदुस्तान में इतना चर्चित और बहस का विषय कभी नही बनता की आज 8 वर्ष का बालक भी "रानी मां पद्मावती" का नाम ले रहा है... धन्यवाद, संजय लीला भंसाली, 'पद्मावती' फिल्म को शूट करने का जिम्मा लेने के लिये. धन्यवाद, नारी स्वाभिमान की सबसे बडी प्रतीक 'पद्मावती' की कहानी से रूबरू कराने के लिये.... धन्यवाद, हम राजपुतों को आजादी के बाद किसी भी मुद्दे पर इतना 'एक' करने के लिये...
उस वक्त किसी राजपुत ने मलिक मुहम्मद 'जायसी' का सर कलम कर दिया होता तो आज 497 वर्ष बाद इस कहानी को लेकर ये नौबत ही नही आती, यह बवाल ही नही उठता... उस दौर में तो आज से ज़्यादा राजपुत सुरमा थे, उनका खूं जायसी पर इतना नही खोला जितना आज संजय लीला भंसाली पर !!
कौन सी कहानी सच है, क्या झूठ है, और कितनी कल्पना जोड़ी गई है ? किसी को पता नही. राजपुतों ने आज तक अपने लिखित इतिहास के साथ हुए खिलवाड की पुरजोर खिलाफत कभी नही की... राजपुत शासकों को लूट कर मुगलों ने अपने अपने खजाने भरे... वर्तमान में एतिहासीक राजपुताना इमारतों और किलों की दुर्दशा देख लिजिये और देश में मुगलकालीन इमारतों की कायम चमक-दमक... आप को अंदाजा हो जायेगा की 1947 से 2017 तक 70 वर्षों बाद आपने जागने में देर कर दी... संजय लीला भंसाली से निपटने के बजाय आप अपनी अमुल्य एतिहासीक धरोहरों पर कालीख पोतने वाली पिछली 70 बरस की सरकारों से निपटेंगे तो राजपुत धन्य होगा...
अभी तक, इतना विवाद हो जाने के बाद भी स्पष्ट तौर पर यह मेरी समझ नही आ रहा की 'पद्मावती' फिल्म का विरोध किसलिये ? जब संजय शूटींग कर रहे थे और उन पर करणी सेना द्वारा हमला किया गया था, तो आरोप था की फिल्म में 'खिलजी और पद्मावती' के बीच कोई स्वप्न द्रष्य फिल्माया जा रहा था. ऐसा था, तो अब संजय एक वीडीयो जारी कर बता चुके हैं की उनकी फिल्म में ऐसा कोई द्रश्य नही है...विवाद खत्म हो जाना चाहीये...
फिर एक बात आई की "हम पद्मावती को कालबेलीयों के साथ किसी सभा में नृत्य करते नही देख सकते ? ठीक है, इस बात पर संजय से उनकी इस फिल्म में से वे सारे गाने हटा देने की स्पष्ट मांग करनी चाहीये जिसमें दिपीका पादुकोण ने नृत्य किया है... विवाद खत्म ...
वेसे दृश्य तो मुझे यह ज़्यादा काल्पनिक और हास्यास्पद लगता है जिसमें किसी दुसरे शासक की लालसा पर कोई राजपुत राजा अपने राज्य और उसकी प्रजा के हीतों के लिये अपनी रानी का चेहरा सरोवर में अथवा दर्पण में दिखाने को राजी हो जाये... इस लालसा पर ही युद्द हो जाना चाहीये... सो ये भी गलत है... विवाद खत्म... कुछ युं भी कहते हैं की 'रानी पद्मावती' अपने किले में सरोवर के पास खडी थी, वहां खिलजी ने सरोवर में उनकी परछाई को देख लिया, तब पहली बार खिलजी के मन में उनके प्रति आसक्ती का भाव आया.
पर कुछ कहते हैं की रावल रतन सिंह जी के दरबार का एक गद्दार जाकर खिलजी से मिला जिसने रावल रतन सिंह की रानी पद्मावती के रूप का वर्णन किया ताकी खिलजी, रावल रतन सिंह पर हमला बोले और गद्दार अपना बदला ले सकें...
वर्तमान वसुंधरा सरकार ने राजस्थान टूरीज्म प्रमोशन के लिये जो एड बनवाया उसमे जिक्र किया की "अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी 'प्रेमीका' 'पद्मावती' का चेहरा इस सरोवर में देखा और बावला हो गया..." उम्मीद यही है की संजय लीला भंसाली से निपटने के बाद राजपुत, वसुंधरा सरकार से भी निपटेंगे... लेकीन जो भाजपाई, संजय लीला भंसाली से निपटने के लिये राजपुतों के साथ खडे हैं क्या वे भाजपाई, वसुंधरा सरकार से निपटने के लिये भी हम राजपुतों की मदद करेंगे ?
जायसी ने तो स्वयं अपनी पूरी कहानी को काल्पनिक बताया... उनके द्वारा 'पद्मावत' खिलजी के चित्तोड आक्रमण के लगभग 200 वर्ष बाद लिखा गया... जायसी ने लिखा "एक तोता था जिसके मूंह से 'पद्मावती' के सौंदर्य की गाथा सुनकर चित्तौड के राजा उस तोते के पिछे-पिछे श्रीलंका चले गये, जहाँ की राजकुमारी 'पद्मावती' थी !!! 1300 इस्वी में बोलने वाले तोते होते थे क्या ? दोहराने वाले तोते तो होते हैं, मगर आकाशवाणी की तरह खबरें सुनाने वालें ? और 200 वर्षों बाद हुए जायसी को इनकी प्रेम कहानी पता है, मगर खिलजी ने जिस काल में आक्रमण किया था उस काल में पैदा हुये अमीर खुसरों ने यह तो लिखा की खिलजी ने आक्रमण किया था मगर उन्होने कहीं भी 'पद्मावती' व इनकी प्रेम कहानी का उल्लेख नही किया... खुसरों को शायद लव- स्टोरीस में इंट्रेस्ट नही होगा !!!
आज हमारे समक्ष सबसे बडी चुनोती यह है की हम जायसी को भी पढे, खुसरों को भी पढे, अब तक हुए शोधों को पढे फिर हमारे राजपुताना इतिहास को वेसा लिखें जैसा हुआ...
हालांकी संजय लीला भंसाली भी मजे ले रहे हैं और अपने नफे-नुकसान से वाकीफ हैं... तभी तो जो जायसी स्वयं अपने 'पद्मावत' को काल्पनिक बता चुके हैं, उनकी कहानी पर फिल्म बनाने वाले संजय लीला भंसाली कह रहे हैं की "हमने इतिहास के साथ कोई छेडछाड नही की है"... जब आपकी फिल्म जायसी के पद्मावत पर आधारित है, वास्तविकता पर आधारीत नही है तो इस कहानी में दिखाने जैसा क्या है ? और यदि आपकी फिल्म काल्पनिक है तो किसी भी किरदार का नाम रावल रतन सिंह नही होना चाहीये !! क्योंकि किले की महारानियों के जोहर, जो एक मात्र सत्य है वह किसी खिलजी के डर से नही बल्कि
युद्ध के अंतिम भयावह परिणाम से पूर्व महल में होने वाली पवित्र रस्म थी जिसे रानी पद्मिनी ने अपनाया।
अब इतनी पेचीदगीयों में हम राजपुतों को किस बात पर विरोध करना चाहीये ? किस बात पर एक होना चाहीये ?
अपनी विरासत को संभालने और अपने सच्चे इतिहास को दुनिया के समक्ष लाना ही हमारा काम होना चाहीये. यह नही की हम लिखे हुए इतिहास में से अपनी विजय, अपनी गौरवगाथाओं, अपने बलिदान, अपने त्याग को छांट लें और अपनी हार, महलों के षड्यंत्र, परिवार में मौजुद गद्धारो और कमजोरियों को इतिहास से निकाल दें.
फिल्म में किरदार निभा रही एक अभिनेत्री को वेश्या कहना हमारी संस्कृती नही. नारी सम्मान की सबसे बडी प्रतीक 'मां पद्मीनी' के अनुयाई विरोध करते वक्त भी यह खयाल रखें की नारी सम्मान के खातिर ही उन्होने 'जोहर' किया था...निहत्थों पर वार करना हमारी सीख नही और न्याय रहित निर्णय करना राजपुतों की परंपरा नही.

 ~ कपिल सिंह चौहान
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