05 July 2017

पत्रकार



चाँद को ठोर देता हूँ,
पहाडो के राज़ कहता हूँ
बहुत मुश्किल नही है ये,
की दरख्तों को भी छॉंव देता हूँ मैं...

रास्ता सभी का एक ही है,
मंजिल भी एक ही है
बस सफर है ये के जहाँ,
खूsssल के सांस लेता हूं मैं...

झूंठ-फाश का शगल
है.. तो है ! तो ! है तो,है..
हाँ, माना के कभी कभी
मुसीबत, मोल लेता हूं मैं... 

मैं क्या हूँ, क्या हो तुम
चंद लम्हों में हो जायेंगे गुम
झूंठ बिकता है जिस बाज़ार में,
सच को बांच देता हूँ मैं...

दुआओं में जिंदा रहुंगा,
देखना गर सच कहुंगा मैं
मैं रहूं ना रहूँ, बेपरवाह हो
अफवाहों के पर कतर देता हूं मैं... 

ओट में छिपी हकीकत को
मुझसे देखा नही जायेगा
फिक्र यही है के किसी रोज ना
  मदमस्त इस और लेटा रहूं मैं...

~ #कुं‌_कपिल_सिंह_चौहान
+91 9407117155 
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— with Kunwar Kapil Singh Chauhan