अब जब टमाटर 40/-
पार बिक रहा है तो मैं नासमझ समझ रहा
हूं की "किसानों को उनकी फसल का उचित दाम" मिल रहा है ...
अरे, जब हम 40/- में
खरीद रहे हैं तो दे दो ना किसानो को 25/- का भाव... मगर नही ये टमाटर भी किसानो ने तो 3/- रुपये किलो में ही बेचा होगा
गरीब और मध्यम वर्गीयों के टेक्स के रुपयों से 2/- का प्याज 8/- में खरीद कर फिर व्यापारी को 3 रुपये 10 पैसे में बेचने वाली सरकार धन्य है.. 3 रुपये 10 पैसे में भी लालची, मक्कार, फकीर, सरकारी अधिकारी कमीशन ले रहे है.. एक का वीडीयो वायरल हुआ तो उसकी नौकरी गई.... ये ढांढे भ्रष्टाचारी अफसर नही जानते के शास्त्रों में लिखा है की भ्रष्टाचार से की गई कमाई से कीडे......... उल्टी दस्त हेजा ...... बच्चे विक..... सॉरी दिव्य... खून की ...
हा हा हा :) :) :) कैसे समझाउं इन मक्कारों को...लानत है इन भ्रष्टाचारीयों पर...
मृतक नामांतरण तक का पैसा रिश्वत में देना पडता है किसान को... इसकी हाय किसे लगेगी... पात्र गरीब को बीपीएल राशन कार्ड बनवाने में इतना कष्ट है जितना 9 माह में बच्चा पैदा करने में नही होता होगा और 5 जनसुनवाई में जाना अलग .. वहीं अपात्र लोग (जो गरीब नही हैं ) बी पी एल का राशन ले रहे हैं... गरीबों का हक खा रहे हैं...ज़मीर मर चुका है... सरकार बस उन्हे खुश करती है जो ज़्यादा की तादाद में नाराज हों... किसान नाराज तो मरने वाले को एक करोड... एक करोड माने इतना पैसा, मुख्यमंत्री बनने से पहले शिवराज सिंह चौहान ने खुद नही देखा होगा... किसका पैसा है ये ... ये मेरा और आपका पैसा है... पिप्लिया मण्डी में जिन व्यापारीयों के यहां आग लगाई गई क्या उनके परिवार में से भी किसी का मरना ज़रुरी हैं ? क्या तब उनके परिवारों के बारे में सोचा जायेगा...
क्या इस राज्य में सम्मान से रहने के लिये मरना ही ज़रुरी हैं... अपनी नाकामीयों को छुपाने का मुआवजा एक करोड कैसे तय कर सकती हैं सरकार !!!
लोक सेवा प्रबंधन के नाम पर सरकार से मूल भुत दस्तावेजों को प्राप्त करने पर शुल्क लगाने वाली सरकार के मुखिया को अब यह कहना पड रहा है की हम फलां समय से फलां समय तक खाता-खसरा की नकल मुफ्त देंगे... नब्ज़ पकड में तो आई मगर इलाज नही...खसरा मुफ्त में नही चाहीये...
सर भ्रष्टाचार मुक्त चाहीये राज्य... अफीम काश्तकारों के पास ज़मीन ना हो और अपने भाई की ज़मीन पर पट्टा लेना हो तो लीगल डॉक्युमेंट्स में 4 हज़ार रुपये खर्च हो जाते हैं... नार्कोटीक्स कार्यालय में जाने के पूर्व नार्कोटीक्स द्वारा तय मुखिया 60 हज़ार रुपये प्रति किसान ले के अधिकारीयों को चढाता है तब पट्टा मिलता है,और पैसे ना दो तो पट्टा नही मिलता... ना ही यह पता चलता है की पट्टा काटा क्यों गया... और हुकुम से पूछ लो के मुझे पट्टा क्यों नही मिला तो फिर सात पीढीयों तक पट्टा नही मिलेगा...
सडक बनाने वाले ठेकेदार को भूमी पूजन का खर्च तो उठाना ही है साथ ही उसी दिन माननीय विधायक जी के नाम का लिफाफा भी आपकी सरकार का अधिकारी दाब लेता है, फिर अपना हिस्सा निकाल कर विधायक जी तक वह लिफाफा पहुचा देता है... इसके बाद लोकार्पण तक का सारा खर्च वहन करते हुए अपने काम की अंतिम किश्त पाता है ठेकेदार... अब विधायक जी किस मूंह से पुछेंगे के भय्या दो चार महिने में ही नई सडक का कचुमर कैसे निकल गया...
मैं भी ऐसे बता रहा हूं जैसे की मुख्यमंत्री जी को कुछ पता ही ना हो... हालात बहुत गंभीर हैं... मैं कहता हूं, सौ चुहे खा कर तो बिल्ली भी हज को चले जाती है... आप कब हज पर जा रहे हैं महाशय !!
~ कपिल सिंह चौहान
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