- कपिल सिंह चौहान
मध्यप्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट उसी दिन से चर्चा में आ गई थी जिस रोज कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भोपाल से अपना लोकसभा उम्मीद्वार घोषित किया. भोपाल सीट पर पिछले कई चुनावो से भाजपा का कब्जा रहा और यह माना गया की दिग्विजय सिंह को फ़साने के लिए उन्हें इस सीट पर झोंका गया है. उसके बाद भाजपा द्वारा साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से टिकट दिए जाने पर, यह देश भर में सबसे ज्यादा चर्चित सीट हो गई है. साध्वी प्रज्ञा कट्टर हिंदुत्व का चेहरा हैं. साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी और उनके द्वारा दिये गए बयानों से देश भर में जो संवाद पैदा हुआ उसने भाजपा के उस पुराने चेहरे को याद दिला दिया जिस चेहरे को 2014 में भाजपा खुद भूला कर चुनाव में उतरी थी या याद नहीं दिलाना चाहती थी. बीते लोकसभा चुनाव में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की 2014 चुनाव अभियान समिती के अध्यक्ष नरेन्द्र मोदी ने गुजरात मॉडल और विकास पर ही ध्यान केन्द्रित किया था. तब घोषणा-पत्र को लेकर भी भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरलीमनोहर जोशी और मोदी के बीच कुछ तनाव की खबरें आई थी क्यूँकी मोदी भाजपा के हिंदूवादी चेहरे से विरत विकास पर ही फोकस करना चाहते थे और इसीलिए पिछले घोषणा पत्र में हिंदुत्व पर नरमाई रही. इस का फ़ायदा भी भाजपा को मिला और देश में मोदी ने एक छत्र जीत हासील की और प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए.
मध्यप्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट उसी दिन से चर्चा में आ गई थी जिस रोज कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भोपाल से अपना लोकसभा उम्मीद्वार घोषित किया. भोपाल सीट पर पिछले कई चुनावो से भाजपा का कब्जा रहा और यह माना गया की दिग्विजय सिंह को फ़साने के लिए उन्हें इस सीट पर झोंका गया है. उसके बाद भाजपा द्वारा साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से टिकट दिए जाने पर, यह देश भर में सबसे ज्यादा चर्चित सीट हो गई है. साध्वी प्रज्ञा कट्टर हिंदुत्व का चेहरा हैं. साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी और उनके द्वारा दिये गए बयानों से देश भर में जो संवाद पैदा हुआ उसने भाजपा के उस पुराने चेहरे को याद दिला दिया जिस चेहरे को 2014 में भाजपा खुद भूला कर चुनाव में उतरी थी या याद नहीं दिलाना चाहती थी. बीते लोकसभा चुनाव में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की 2014 चुनाव अभियान समिती के अध्यक्ष नरेन्द्र मोदी ने गुजरात मॉडल और विकास पर ही ध्यान केन्द्रित किया था. तब घोषणा-पत्र को लेकर भी भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरलीमनोहर जोशी और मोदी के बीच कुछ तनाव की खबरें आई थी क्यूँकी मोदी भाजपा के हिंदूवादी चेहरे से विरत विकास पर ही फोकस करना चाहते थे और इसीलिए पिछले घोषणा पत्र में हिंदुत्व पर नरमाई रही. इस का फ़ायदा भी भाजपा को मिला और देश में मोदी ने एक छत्र जीत हासील की और प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए.
अब सवाल यह उठता है की बीते 5 वर्षो में ऐसा क्या हुआ की भाजपा को साध्वी प्रज्ञा की
आवश्यकता आन पड़ी और उसके बाद वे देश भर के विमर्श का केंद्र बन गई ! साध्वी
प्रज्ञा की उम्मीदवारी के बाद से काश्मीर से लेकर देश भर के विपक्षी नेताओं ने
भाजपा के खिलाफ अपना मूंह खोला, जो होना ही था, तो क्या भाजपा को इसका अंदेशा नहीं
था ! क्या भाजपा स्वयं इस बार साध्वी प्रज्ञा के सहारे अपने उस चेहरे को भी सामने
रखना चाहती है जिसे वो 2014 में छुपा रही थी. यह मात्र संयोग भी रहा हो की दिग्विजय सिंह
के खिलाफ भाजपा को कोई अन्य उम्मीद्वार ना मिला हो या फिर कोई अन्य नेता राजी ना
हुआ हो. यह भी हो सकता है की मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों में भाजपा और
कांग्रेस के बराबरी वाले प्रदर्शन से पार्टी को यह महसूस हो रहा हो की थोड़ा सा
हिंदुत्व का ‘छौंक’ लगा कर वे कांग्रेस को पछाड़ने में कामयाब
होंगे.
देश भर में साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी के बाद एकदम से चुनावी
रंगत बदल गई. भाजपा के कार्यकर्ता यह प्रचारित करने लगे की साध्वी, दिग्विजय सिंह
से बदला लेने आई है. कहा जाने लगा की साध्वी प्रज्ञा के हाथों दिग्विजय सिंह को हराकर
साध्वी को न्याय दिलाना है. सोशल मीडीया पर भाजपाईयों ने उन यातनाओं का जिक्र करते
हुए साध्वी की
फिक्र जताई की कैसे साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी के बाद उनके साथ अन्याय हुआ. अजीब
यह था की भोपाल से उनके नाम की घोषणा होने से पहले साध्वी प्रज्ञा की ऐसी फ़िक्र किसी
को नहीं थी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी की
पैरवी करते हुए यह बयान दिया की “उन पर आरोप सिद्ध नहीं हुआ है” और “विपक्षीयो
द्वारा तो कई ऐसे दागी नेताओं को भाव दिया जाता है जिन पर आरोप सिद्ध हुए हैं.”
विडम्बना यह है की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तो 2014 में इसलिए भी वोट मिले थे क्यूँकी
उन्होंने कहा था की वे 100 दिन में दागी सांसदों के खिलाफ कानून ले कर आयेंगे. कानून बनाने के बजाये
उन्होंने साध्वी प्रज्ञा को उम्मीदवार कैसे बनाया ! फिर उनमें और अन्य पार्टीयो में
अंतर क्या है ?
मुम्बई एटीएस चीफ हेमंत करकरे पर दिए गए बयान सहित साध्वी के अन्य
बयानों को उनकी राजनितीक अपरिपक्वता मान कर छोड़ भी दें तो कैलाश विजयवर्गीय जैसे बड़े
और घाघ भाजपाई नेताओं का यह कहना की “साध्वी प्रज्ञा की जीत से यह तय होगा की
हिंदुत्व आतंकवाद है की नहीं” यह भाजपा के लिए बहुत खतरनाक और आत्मघाती ही है. क्या
होगा यह तो परिणामो पर पता चलेगा मगर सोचिये यदि साध्वी प्रज्ञा हार गई तो क्या
साबित होगा ? यह की हिंदुत्व आतंकवाद है ? भाजपा साध्वी प्रज्ञा की हार के बाद क्या
मूंह दिखायेगी !
जहां तक भोपाल सीट का प्रश्न है अब तक दिग्विजय सिंह बहुत
सावधानी से सिर्फ प्रचार मे लगे हैं, पिछली गलतीयों की माफी भी मांग रहे हैं. शुरुआती
संभावनाओ में एकदम से हारे हुए लग रहे दिग्विजय सिंह पिछले एक महीने से भोपाल नापने में लगे हैं. उनकी तैयारी अच्छी दिख रही है और वो
रोजाना भोपाल से संबंधित मुद्दे उठा रहे हैं. यह चुनाव उनकी प्रतिष्ठा का चुनाव बन चुका
है. उनका पूरा परिवार पुरजोर मेहनत कर रहा है क्यूँकी वे जानते हैं की टक्कर कांटे
की नहीं बल्की वे पीछे ही हैं. लेकिन यह भी सही है की हौले-हौले वे आगे बढ़ तो रहे हैं.
जबकी भाजपा ने अपना प्रत्याशी घोषित करने में बहुत देर की. साध्वी से भाजपा को देश
में माहौल बनाने का भले अवसर मिला हो लेकिन भोपाल में क्या होगा यह
विचारणीय है. कांग्रेस ने दीग्गीराजा को भोपाल व्यस्त करके अच्छा ही किया नहीं तो
चुनावी मौसम में वे अपने बयानों से कांग्रेस के लिए संकट खड़े करते आये हैं. उधर जब
साध्वी के बयानों से परेशान संघ और भाजपा आलाकमान उन्हें बार-बार समझाईश और हिदायतें
दे रहा है तो कम से कम कैलाश विजयवर्गीय जैसो को और मुश्किलें नहीं बढ़ाना चाहीये.
विजयवर्गीय को ऐसे बयान नहीं देने चाहीए जो भाजपा के गले की हड्डी बन जाए.
~ कपिल सिंह चौहान
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फोटो साभार- पत्रिका