18 January 2017

शिवराज भिया, तुमने नर्मदा किनारे दारु बेन कर के ठिक नी किया !!!

शिवराज_भिया, हां हम तुमे मामा भी के सकते हैं, क्योंकी हमाई अम्मा तो मां नर्मदा हैं.. और तुमने उसकी रक्षा का ठेका ले लिया है. तो तुम मामाइ हुए ना ! मगर पहले मेन बात तो सुन लो...
 
अमभी मध्यप्रदेश केई हैं.. और तुमने नर्मदा किनाये दारुबंदी का डिसजन ले कर ठिक नी किया... अरे, एक कारण तो ढंग्का बताओं की हमे लगे के तुमने भोत भेतरीन काम किया!! लोगहोन के रे हैं की इससे नर्मदा मय्या गन्दी नी होगी... नर्मदा मय्या कौन से पेग लगा रई थी जो वो दुकान पास होने से गंदी हो जाती ? बताओ कैसे गंदी हो जाती ? चलो, जो पिते हैं वो गंदी करते हैं, अपन ये भी नी मानते... कौन बेवडा होगा जो दारु जैसा बहुमुल्य पेय पदार्थ नर्मदा में ढोलता होगा ! जिसका कोई फायदा नी, हैं! अच्छा, छोरे होन के रे हैं की खाली बोतलें फेकते हैं पियक्कड , इसलिये बेन की है वआं... तो तुमने पानी की बोतलों पे तो बेन नी लगाया वां...कितने ही पानी फिल्टर प्लांट लग रे हें वां... टूरिस्ट भी पानी की बोतलें ले ले के किनारे पे मस्त पर्यटन करते हैं, उनपे तो बेन नी लगाया! फिर सुना की दारुडिये मांसमच्छी खा के नर्मदा में फेकंते हैं पानी में.. ये भी अपने गले नी उतरा... इतने सारे रेस्टोरेंट है 'मय्या' किनारे, जिनमे पांच किलोमीटर के दायरे में लोगहोन सब दबा के नानवेज सुतते हैं, उस पे तो बेन नी लगाया ! नी मेरे समजई, नी आया के आखेर तुम ने ये 'नेक' काम क्यों किया ! मुझे तो तुम मुख्यमंत्री कम, एक कथावाचक ज़्यादा लगते हो. तुम बोलते भी विश्व में सबसे ज़्यादा शब्द प्रतिमिनट हो.. पिछले चुनाव में तुमने भिया, मोदी जी से ज़्यादा शब्द प्रति मिनट बोले थे.. एक कथा वाचक ही ये कर सकता है... महाराज और संतओन जैसेइ, सेम लगते हो तुम मेरे को... हर जगह आनन्दम-आनन्दम ये कोई संत ही कर सकता है... तुम्हारे प्रवचन ! सॉरी, भाषण भी सेम लगते हैं... एक कथा वाचक की तरह तुम भाषण दे जाते हो, और उन पर अमल तो कोई नी करता, तुम्हारी सरकारइ नी करती तो और कोन करेगा. वेसेई जैसे संतों की बात पे कोई अमल नी करता...और लोग होन केते हैं के तुम "घोषणा-वीर" मुख्यमंत्री हो.. अरे समजेइ नी भिया वो लोग, के तुम संत हो संत... इसिलिये तो तुमने नर्मदा किनारे दारुबंदी कर दी... मगर तुमने बहुत बुरा किया भिया...
जिंदगी में दो तीन मौके आये जब हमारा मन बहुत खराब हो गया... मजाई नी बचा जीवन में... रसइ नी था.. भेंकर से भेंकर विपदायें आन पडी जीवन में... हमे सोची के अब तो नर्मदा मय्या के आंचल में छलांग लगा के अपनी जीवनलीला समाप्त कर लें. मगर जैसे जैसे नर्मदा मय्या के करीब जाते, वैसे-वैसे वो दारु का ठेका हमारे पास आता. हम जाते तो फूल मूड बना के मरने का. मगर उसके पहले ही रस्ते में ठेका मिल जाता... मरने से पहले आखरी दो पेग लगाते के, मोसम एक दम से सुहाना होने लग जाता... तुम्हारी कसम नर्मदा के किनारे जा के भी हम छलांग नी लगा पाये. छलांग लगाने के पेलेइ हमे एक नई ताकत मिल जाती... मन जोश से भर जाता... हम थोडा टेम लपलपाती लहरों को देखने बेठ जाते.. और नई प्रेरणा मिलती.. हम सोचते के "मां नर्मदा" के जीवन मेंइ इतने थपेडे हैं, ऐसी खतरनाक लहरे हैं तो हमारी क्या बिसात.. हम सोचते के थोडे कष्ट तो हम भी भोग सकते हैं.. लहरों का क्या है..थोडे उतार चडाव तो सबके जीवन में होतेइ हैं... बस हर दफा इसी तरह, हम बगैर छलांग लगाये लौट आये...मगर भिया आज पता नी क्या होगा. आज भी हम भोत निराश हो गये ज़िन्दगी से... आज फिर हम मरना चाहते हैं... और जैसे-जैसे नर्मदा मय्या के किनारे जायेंगे, वैसे-वैसे हमारी ज़िंदगी पर खतरा बढता जायेगा.. क्योंकी आज वो दारु का ठेका हमको रस्ते में नी मिलेगा.. जो तुम्हारे केने से बंद हो गया है...
~कपिल सिंह चौहान
+91 9407117155
 

08 January 2017

सिर्फ लडकी नही है वो...



सिर्फ लडकी नही है, वह दोस्त है तुम्हारी. अजनबी भी हो सकती है, सहयात्री भी हो सकती है किसी बस में, ऑटो में, सहकर्मी भी हो सकती है ऑफीस में, राहगीर भी हो सकती है. उसी रास्ते जिस रास्ते तुम चल रहे हो वह भी किसी काम से या युं ही टहलने या किसी मूड में या तफरी करने या आवारगी में ही घुमने निकली हो. प्लीज़ अकेली छोड दो उसेवह तुम से कुछ नही चाहती. रहने दो उसे मस्ती में. जब तक वह खुद तुम से कुछ मांगे ना... वह तो तुम से मदद भी नही मांगेगी... पता है क्यों !! क्योंकी तुम आदमी हो... क्योंकी वह जानती है की दुनिया में ज़्यादातर आदमी ही हैं, मर्द तो बहुत कम हैं... वह डरती है तुम से क्योंकी तुम सिर्फ आदमी हो...

तुम भी तो अपने कम्फर्ट के लिये शॉर्ट पहन कर निकले थे ना घर से... तो उसे भी कम्फर्ट में रहने दो ना. जैसे वो चाहे... सिर्फ तुम्हारी ही वजह से क्योंकी तुम आदमी हो और वह जानती है की तुम उसे रास्ते में मिलोगे इसलिये वह घर से निकलने पर अनकॉम्फर्ट ही रहती है... कॉम्फर्टेबल तो सिर्फ घर में ही रह पाती है... वजह तुम हो... और तुमने समझ लिया की उसे तो हक ही नही वेसा रहने का इसलिये वह ऐसा रहती है...

वह तुम्हे ड्रिंक करते दिखी तो तुमने समझ लिया की वह मूड में है!!!  उसे थोडी चड गयी तो तुम समझे इसे कुछ चाहीये... अरे भाई !! हाँ वह मूड में है... मगर सिर्फ ड्रिंक करने के मूड में है... 

तुम्हे उसके वेस्टर्न पहनने से दिक्कत है... उसने तो अब तक सलवार कुर्ता भी पहना... तब भी तुमने उसे बख्शा नही... तुम ट्रेन में हो या बस में, तुम ऑफीस में हो या घर पर, हर जगह.  जैसे, तुम ड्रायविंग सीट पर बैठे हो या पिछे वाली सीट पर सफर कर रहे हो...जब वह तुम्हारे रिक्शा में पैर रख कर बैठने की कोशीश करती है, उसी वक्त तुम उसे बता देते हो की तुम आदमी हो. उसके रिक्शा में घुसने के लिये झूकते वक्त जब तुम अपनी सीट पर थोडा उठ कर पता कर रहे थे ना की वह, कुर्ती के अंदर से कैसी है तभी वह जान गयी थी की तुम मर्द नही हो... तुम सिर्फ आदमी हो... उसने तुम से कुछ कहा नही, किसी से भी नही कहा, बस वह जान गयी... किससे कहती... किसको सुनाती... सुनने वाले भी तो ज़्यादातर आदमी ही हैं...

तुम्हारी मां, बहिन या पत्नी ने भी तो कभी सलवार-कुर्ता पहना होगा... वो भी तो स्कूल या ऑफिस जाती होंगी, वो भी तो ट्रेन में सफर करती हैं ... बस-रिक्शा में चढती हैं. हम सबकी मां-बहने, पत्नी वही करती हैं, वही सहती हैं जो 'वो' सहती है... और इन सभी को सार्वजनिक जीवन में 'आदमी' मिलते हैं...   

‍‍~ कपिल सिंह चौहान
+91 9407117155